Friday, March 30, 2018

वजूद

वजूद

स्वीकारलो
मुझे ऐसा का ऐसा ही
जैसाकि मैं हूँ
अपने तमाम अवगुणों के साथ....
फिर तुम मेरी
प्रेयसी हो, गुरु  हो  या
चाहे  हो  भगवान !

बिना अवगुणों के
या अवगुण जैसा तो  कभी
कुछ होता ही नहीं
न  धरती... न  आकाश ....  ।

मेरे विशेषगुण ही
अवगुणों में बदल जाते हैं
वक़्त, जरूरत व  दृष्टि
बदलने के साथ  ही  साथ ....

मुझको ऐसे ही
संभालो ! सहेजो !
मेरे इसी वजूद के साथ ... .  ।
     --------             सुरेन्द्र भसीन


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