एक पौधा पश्चाताप का
क्या करें !
अपनी गल्तियाँ, अपने गुनाह
बार-बार मुँह पर आकर फिर -फिर
हमें बेचैन और विचलित करते जाते हैं....
और वक़्त बीत जाने पर हाथ मलने के सिवा
हम कुछ नहीं कर पाते हैं ....
पश्चाताप,ग्लानि तो है और रहेगा भी मगर
उस सजा का क्या ?
जिसके हम हक़दार हो गये हैं
और निर्लज्ज क्रोध में, आवेश में
हम अपने भविष्य के लिए क्या-क्या बो गए हैं ?
अब हम कितनी ही
पवित्र नदियों-सरोवरों में क्यों न कर लें नहान
याकि कितने भी देवी-देवताओं का क्यों न कर लें ध्यान
जो दुष्कर्म की लकीर हमारे
हाथों की हथेली में खिंच गई है
उसे कोई मिटा न पायेगा और कोई भी
पीरो-फकीर हमारे गुनाह भी कभी बख्शवा न पायेगा ...
अब मन, आत्मा की शांति के लिए
हमें एक पौधा बौना चाहिए
परोपकार की खाद, धैर्य के जल से सींचकर
उसे बड़ा करना चाहिए
जब वह एक दिन हमारे जितना आदमकद हो जायेगा
तभी, तभी हमारा
पाप का , गुनाह का अहसास भी
बेअसर हो जायेगा।
----------- सुरेन्द भसीन
क्या करें !
अपनी गल्तियाँ, अपने गुनाह
बार-बार मुँह पर आकर फिर -फिर
हमें बेचैन और विचलित करते जाते हैं....
और वक़्त बीत जाने पर हाथ मलने के सिवा
हम कुछ नहीं कर पाते हैं ....
पश्चाताप,ग्लानि तो है और रहेगा भी मगर
उस सजा का क्या ?
जिसके हम हक़दार हो गये हैं
और निर्लज्ज क्रोध में, आवेश में
हम अपने भविष्य के लिए क्या-क्या बो गए हैं ?
अब हम कितनी ही
पवित्र नदियों-सरोवरों में क्यों न कर लें नहान
याकि कितने भी देवी-देवताओं का क्यों न कर लें ध्यान
जो दुष्कर्म की लकीर हमारे
हाथों की हथेली में खिंच गई है
उसे कोई मिटा न पायेगा और कोई भी
पीरो-फकीर हमारे गुनाह भी कभी बख्शवा न पायेगा ...
अब मन, आत्मा की शांति के लिए
हमें एक पौधा बौना चाहिए
परोपकार की खाद, धैर्य के जल से सींचकर
उसे बड़ा करना चाहिए
जब वह एक दिन हमारे जितना आदमकद हो जायेगा
तभी, तभी हमारा
पाप का , गुनाह का अहसास भी
बेअसर हो जायेगा।
----------- सुरेन्द भसीन
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