प्रेम
मुझे उसने अपनी आँखों में क्या भरा
कि मैंने कशती से किनारा कर लिया।
बहता ही चला गया मैं सातों महासमुद्र
जब उसने अपनी आगोश में भर लिया।
अपने से ही बेगाना हो गया मैं तब जब
उसने मेरे दिल में ही घर कर लिया।
जब उसने पुकारा मेरा नाम नर्म होठों से
अपनी देह में मानों मेरा अहसास भर लिया।
अब कैसे कहूँ मैं इन लरजते लबों से
कि मैंने उससे बेइंतहा प्रेम कर लिया।
------ सुरेन्द्र भसीन
मुझे उसने अपनी आँखों में क्या भरा
कि मैंने कशती से किनारा कर लिया।
बहता ही चला गया मैं सातों महासमुद्र
जब उसने अपनी आगोश में भर लिया।
अपने से ही बेगाना हो गया मैं तब जब
उसने मेरे दिल में ही घर कर लिया।
जब उसने पुकारा मेरा नाम नर्म होठों से
अपनी देह में मानों मेरा अहसास भर लिया।
अब कैसे कहूँ मैं इन लरजते लबों से
कि मैंने उससे बेइंतहा प्रेम कर लिया।
------ सुरेन्द्र भसीन
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