मैं तो
एक बहती हुई
प्रेम नदी हूँ याकि
एक गिरता प्रेमप्रपात
कितने भी दूरह चट्टानों से बने हो तुम
तुम्हारे अंर्तमन तक को गला कर
एक दिन बहा ही ले जाऊँगी अपने साथ....
कितनी भी हठ करो
अटके,टिके रहने की अपनी वर्जनाओं के साथ
चाहे जकड़े, पकड़े रहो अपने अहम के हाथ
मगर तुम्हें बहना ही होगा,
तुम्हें बहा ही ले जाऊँगी
एक दिन अपने ही साथ.....
क्योंकि मैं तो
एक बहती प्रेम नदी हूँ
या गिरता एक प्रेमप्रपात....।
---------- सुरेन्द्र भसीन
एक बहती हुई
प्रेम नदी हूँ याकि
एक गिरता प्रेमप्रपात
कितने भी दूरह चट्टानों से बने हो तुम
तुम्हारे अंर्तमन तक को गला कर
एक दिन बहा ही ले जाऊँगी अपने साथ....
कितनी भी हठ करो
अटके,टिके रहने की अपनी वर्जनाओं के साथ
चाहे जकड़े, पकड़े रहो अपने अहम के हाथ
मगर तुम्हें बहना ही होगा,
तुम्हें बहा ही ले जाऊँगी
एक दिन अपने ही साथ.....
क्योंकि मैं तो
एक बहती प्रेम नदी हूँ
या गिरता एक प्रेमप्रपात....।
---------- सुरेन्द्र भसीन
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