Wednesday, March 14, 2018

जवाबदेही

तुम
क्यों गिन रही हो
चुन रही हो
मेरे सफेद निर्दोष शब्दों में से
वैमनस्य के काले कंकर
मेरे शब्दों को
कहे वाक्यों को
क्यों तुमने क्रोधित,गलत अर्थों में ह्रदय से लगाया है....
मेरे कहे शब्द
इतने नुकीले, इतने  कटीले भी न थे
जितने कि तुमने इनसे घाव खाए हैं.....
और उनके ऐसे मतलब भी न थे
कि जितने उनपर तुमने आंसू बहाए हैं...
यह जो
बेमतलब की गलतफहमियां कुकरमुत्ता-सी  पनपी हैं
यह जो गहरी खाइयाँ फटी हैं हमारे बीच
इन्होंने न जाने हमारे कितने वर्ष खाए हैं ....
इनको कोई तीसरा कभी
न समझेगा, न जानेगा।
हम इकठ्ठे थे
        तो  रहेंगे  भी  सदा
यह हमारे मन की आस
हमारा  अंतर्मन ही जानेगा...
आते हैं,
आते ही रहते हैं
ऐसे कई तूफ़ान और  झंझावात जीवन में
मगर उनको हमारा
प्रेम ही उत्तर है
यह हर आनेवाला  वक्त ही जानेगा ...
                -----------                     सुरेन्द्र  भसीन   

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