Tuesday, March 27, 2018

उदगार

  उदगार 

 मुझे अब
कुछ न कहना
छूना भी मत
वरना मैं रो दूँगी
और तुम्हें हमेशा के लिए खो दूँगी
उड़ जाऊंगी तुम्हारा पिंजरा छोड़कर
उन्मुक्त गगन में चली जाऊँगी दूर कहीं...
मानती हूँ कि मैं वो पाखी हूँ
जिसे एक पिंजर से प्यार हो गया था
मगर अब रिश्तों की सारी सलाखें तोड़
मैं इस पिंजरे को
सदा-सदा के लिए छोड़ दूँगी...
मुझे अब छूना भी मत
वरना मैं
यह अपना पिंजर भी तोड़ दूँगी...।
--------                               सुरेन्द्र भसीन
           

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