Thursday, April 12, 2018

....तुलते-तौलते

....तुलते-तौलते
न जाने क्यों
लगता है मुझे
कि तुम कहीं गये ही नहीं हो
यहीं कहीं हो...
हर वस्तु, पेड़-पौधे, फूल-पत्ती से झाँकते
और मेरी ही नजरों से, आत्मा से
मुझे हर समय तौलते!
आँकते!
अब मेरा सारा जमीर ही रहता है सदा
कैमरे की पैनी निगाह में याकि
स्कैन होता जाता मेरा अस्तित्व...
सांस-सांस, तार-तार
फेफड़ों में बजती, ऊपर नीचे चलती
दिखती है मुझे स्वयं को लगातार...
निर्लेप, निष्पक्ष हो करती
आकलन मेरा,
मेरे कृत्यों का...
तौलती मुझे
तुम्हारी दी शिक्षाऔं पर, आदर्शों पर....
मैं समझ नहीं पाता हूँ कि
कोई ऐसे कैसे बिता सकेगा
लम्बा भरा पूरा जीवन
द्वीज होकर अपनी ही नजरों में
अपने को, देखते..झेलते...
अपनी ही नजरों में
निरन्तर तुलते-तौलते!
------ सुरेन्द्र भसीन

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