Tuesday, November 28, 2017

सरल,साधारण, सामान्य

मुश्किल
बड़ा और  महान
करने की  फ़िराक  में -
सरल,साधारण, सामान्य कुछ
छोड़ा ही नहीं है
हमने इस संसार में
ऐसा  करके बिना वजह
हम एक दूसरे को
अनचाही प्रतियोगिता की ओर
धकेलते-धकियाते हैं और
हम सब जीने आए हैं या दौड़ने
हम यही भूले जाते हैं।
या यूँ कहें
हम असमान्य,असहज और
बीमार समाज का
निर्माण करते जाते हैं !
                -----------          सुरेन्द्र  भसीन 

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