पटरियाँ हों
याकि सड़कें
पीछे ही छूटीं रह जाती हैं
उपयोग होकर सुनसान.....
अपने ऊपर से
हवस के भारी भरकम
वाहनों के गुजर जाने के बाद
धुँआती, पिघलती जिंदगी,
लंबी-लंबी गर्म साँसे लेती अवश... बेबस ....।
होता ही रहता है उनके साथ सदा
यही सब कुछ
उनके उखड़ने, टूटने
टूट के बिखर जाने तक
अनचाहा
बार बार लगातार......
-------------- सुरेन्द्र भसीन
याकि सड़कें
पीछे ही छूटीं रह जाती हैं
उपयोग होकर सुनसान.....
अपने ऊपर से
हवस के भारी भरकम
वाहनों के गुजर जाने के बाद
धुँआती, पिघलती जिंदगी,
लंबी-लंबी गर्म साँसे लेती अवश... बेबस ....।
होता ही रहता है उनके साथ सदा
यही सब कुछ
उनके उखड़ने, टूटने
टूट के बिखर जाने तक
अनचाहा
बार बार लगातार......
-------------- सुरेन्द्र भसीन
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