Sunday, November 26, 2017

"एक पेंटिंग मजबूर लड़कियों की"

पटरियाँ हों
याकि सड़कें
पीछे ही छूटीं रह जाती हैं
उपयोग होकर सुनसान.....
अपने ऊपर से
हवस के भारी भरकम
वाहनों के गुजर जाने के बाद 
धुँआती, पिघलती जिंदगी,
लंबी-लंबी गर्म साँसे लेती अवश... बेबस ....।
होता ही रहता है उनके साथ सदा 
यही सब कुछ
उनके उखड़ने, टूटने
टूट के बिखर जाने तक
अनचाहा
बार बार लगातार......
      --------------            सुरेन्द्र भसीन

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