एक दूजे की
खूबियाँ, समझदारियाँ और अच्छाइयाँ
ढूंढ़ते चाहते ही चले थे हम
एक साथ जीवनयात्रा के शुरूआती छोर से
आनंद पगे, उल्लास भरे.....
और
एक दूजे की
बुराइयाँ, नादानियाँ और कुरुपतायें
न जाने कब से ढूंढ़ने लगे हम
निराशा से भरभराकर
जीवनयात्रा के इस छोर तक आते-आते.....
यह हमारी
प्रौढ़ता है या बचपना ?
हमने सीखा जीवन भर या खोया ?
पाया है या गंवाया है ?
कुछ समझ नहीं आया है....?
-------------- सुरेन्द्र भसीन
खूबियाँ, समझदारियाँ और अच्छाइयाँ
ढूंढ़ते चाहते ही चले थे हम
एक साथ जीवनयात्रा के शुरूआती छोर से
आनंद पगे, उल्लास भरे.....
और
एक दूजे की
बुराइयाँ, नादानियाँ और कुरुपतायें
न जाने कब से ढूंढ़ने लगे हम
निराशा से भरभराकर
जीवनयात्रा के इस छोर तक आते-आते.....
यह हमारी
प्रौढ़ता है या बचपना ?
हमने सीखा जीवन भर या खोया ?
पाया है या गंवाया है ?
कुछ समझ नहीं आया है....?
-------------- सुरेन्द्र भसीन
No comments:
Post a Comment