कुछ चीजें
संबंध या घटनाएं भी
जो जीवन में पीछे छूट जाते हैं
वो फिर अगले जीवन में ही
दुबारा ठीक हो पाती हैं/पूरी हो पाती हैं
जैसेकि
यात्रा में पीछे छूट चुका
कोई शहर,बसअड्डा या रेलवेस्टेशन
पूरा चककर घूमने के बाद ही लौट के आता है वरना
कोई विरला ही होता है
जो उतरकर पीछे जाता है
अपनों को लाने
उनका साथ निभाने।
कई बार रुककर, उतरकर
साथी को लाने की कोशिश में
देरी भी जो हो जाती है
अपनी भी गाड़ी छूट जाती है।
अगर गंतव्य/अंत निश्चित हो एक ही सभी का
तो गति या जल्दी कोई काम नहीं आती है -
क्या फर्क पड़ता है कि कोई कैसे आता है ?
यात्रा तो सभी की पूरी हो ही जानी है प्रत्येक की
भागने से, जल्दी करने से
संबंध और संबंधी ही टूट-छूट जाते हैं लगातार
इकठ्ठे नहीं रह पाते हैं।
मंजिल तक पहुंचते हैं
हम अकेले
थके -टूटे-हारे कांपते ही रह जाते हैं
हाँफते ही रह जाते हैं।
-------- सुरेन्द्र भसीन
संबंध या घटनाएं भी
जो जीवन में पीछे छूट जाते हैं
वो फिर अगले जीवन में ही
दुबारा ठीक हो पाती हैं/पूरी हो पाती हैं
जैसेकि
यात्रा में पीछे छूट चुका
कोई शहर,बसअड्डा या रेलवेस्टेशन
पूरा चककर घूमने के बाद ही लौट के आता है वरना
कोई विरला ही होता है
जो उतरकर पीछे जाता है
अपनों को लाने
उनका साथ निभाने।
कई बार रुककर, उतरकर
साथी को लाने की कोशिश में
देरी भी जो हो जाती है
अपनी भी गाड़ी छूट जाती है।
अगर गंतव्य/अंत निश्चित हो एक ही सभी का
तो गति या जल्दी कोई काम नहीं आती है -
क्या फर्क पड़ता है कि कोई कैसे आता है ?
यात्रा तो सभी की पूरी हो ही जानी है प्रत्येक की
भागने से, जल्दी करने से
संबंध और संबंधी ही टूट-छूट जाते हैं लगातार
इकठ्ठे नहीं रह पाते हैं।
मंजिल तक पहुंचते हैं
हम अकेले
थके -टूटे-हारे कांपते ही रह जाते हैं
हाँफते ही रह जाते हैं।
-------- सुरेन्द्र भसीन