Wednesday, March 8, 2017

गजल

बात  सुननी न कहनी सिखायी गयी 
बस शोर की एक आंधी उठायी गयी। 

कहने को न था फिर भी कहानी बनायी गयी 
अखबार-रिसाले  में बै सिर पैर कई उड़ायी गयी। 

किसी को अदब न तहजीब सिखायी गयी 
बेअदबी-बेशर्मी  से महफ़िल सजायी गयी। 

सच की गलियां-घरोंदे तो सज  न सके  
झूठ और फरेब की दुनिया बसायी गयी।

रईसों के महलों-मकानों पर तो एक न चली 
गरीबों के झोपड़ों पर बिजलियाँ गिरायी गयी।  
          ---------                      -सुरेन्द्र भसीन 
                 

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