बात सुननी न कहनी सिखायी गयी
बस शोर की एक आंधी उठायी गयी।
कहने को न था फिर भी कहानी बनायी गयी
अखबार-रिसाले में बै सिर पैर कई उड़ायी गयी।
किसी को अदब न तहजीब सिखायी गयी
बेअदबी-बेशर्मी से महफ़िल सजायी गयी।
सच की गलियां-घरोंदे तो सज न सके
झूठ और फरेब की दुनिया बसायी गयी।
रईसों के महलों-मकानों पर तो एक न चली
गरीबों के झोपड़ों पर बिजलियाँ गिरायी गयी।
--------- -सुरेन्द्र भसीन
बस शोर की एक आंधी उठायी गयी।
कहने को न था फिर भी कहानी बनायी गयी
अखबार-रिसाले में बै सिर पैर कई उड़ायी गयी।
किसी को अदब न तहजीब सिखायी गयी
बेअदबी-बेशर्मी से महफ़िल सजायी गयी।
सच की गलियां-घरोंदे तो सज न सके
झूठ और फरेब की दुनिया बसायी गयी।
रईसों के महलों-मकानों पर तो एक न चली
गरीबों के झोपड़ों पर बिजलियाँ गिरायी गयी।
--------- -सुरेन्द्र भसीन
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