इंसानियत
ये मोटी, ऊंची, काली
दीवारें हैं बड़ी-बड़ी
जितना मर्जी लिखो-गोदो
इनके भीतर
कभी कुछ नहीं जायेगा ...
कोई उत्तर भी लौट के नहीं आयेगा ...
इनका कुछ नहीं बिगड़ेगा-बदलेगा
तुम्हारी उँगलियों के पोरों से ही
खून रिसने लग जायेगा।
------- -सुरेंद्र भसीन
ये मोटी, ऊंची, काली
दीवारें हैं बड़ी-बड़ी
जितना मर्जी लिखो-गोदो
इनके भीतर
कभी कुछ नहीं जायेगा ...
कोई उत्तर भी लौट के नहीं आयेगा ...
इनका कुछ नहीं बिगड़ेगा-बदलेगा
तुम्हारी उँगलियों के पोरों से ही
खून रिसने लग जायेगा।
------- -सुरेंद्र भसीन
No comments:
Post a Comment