Tuesday, March 21, 2017

इंसानियत

इंसानियत

ये मोटी, ऊंची, काली
दीवारें हैं बड़ी-बड़ी
जितना मर्जी लिखो-गोदो
इनके भीतर
कभी कुछ नहीं जायेगा ...
कोई उत्तर भी लौट के नहीं आयेगा ...

इनका कुछ नहीं बिगड़ेगा-बदलेगा
तुम्हारी उँगलियों के पोरों से ही
खून रिसने लग जायेगा।
            -------     -सुरेंद्र भसीन

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