हक़ीक़त
वो अक्सर श्मशान जाया करता था
वहाँ चिता पर लेट जाया करता था
मरने की सारी रस्मे निभाया करता था
मगर अफ़सोस (उसको ) हर बार
वह लौट आया करता था।
उसको मरने का बड़ा शौक था
अपने को मरते देखना चाहता था,
महसूसना चाहता था -
घण्टों चिता पर
लकड़ियों ऊपर आंखें मूंदे पड़े-पड़े
वह अपनी मौत का दृश्य मनाया करता था
मगर मर नहीं पाता था क्योंकि
लकड़ियों को आग देने के समय हर बार....
हर बार उसका हाथ काँप जाता था,
साहस जवाब दे जाता था और
वो लौट आता था
वापिस घर पर
इस जहान में
एक बार
सचमुच में मरने के लिए....
------------ -सुरेन्द्र भसीन
वो अक्सर श्मशान जाया करता था
वहाँ चिता पर लेट जाया करता था
मरने की सारी रस्मे निभाया करता था
मगर अफ़सोस (उसको ) हर बार
वह लौट आया करता था।
उसको मरने का बड़ा शौक था
अपने को मरते देखना चाहता था,
महसूसना चाहता था -
घण्टों चिता पर
लकड़ियों ऊपर आंखें मूंदे पड़े-पड़े
वह अपनी मौत का दृश्य मनाया करता था
मगर मर नहीं पाता था क्योंकि
लकड़ियों को आग देने के समय हर बार....
हर बार उसका हाथ काँप जाता था,
साहस जवाब दे जाता था और
वो लौट आता था
वापिस घर पर
इस जहान में
एक बार
सचमुच में मरने के लिए....
------------ -सुरेन्द्र भसीन
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