गतियाँ
हजारों-हजार साल से
तुम जन्म लेते ही आ रहे हो
एक अनजानी-अनचाही
कर्मों-दुष्कर्मों की व्यवस्था में बंध-बंधाकर।
तुम्हें नहीं पता
तुम्हारे पिछले दुष्कर्म तुम्हें कहाँ ले जायेंगे या
आज किए पाप और पुण्य भविष्य में
तुम्हारे किस काम आयेंगे ?
फिर भी तरह-तरह की
देह धारण करने को व्यवस्थित हो तुम
किसी एक से निकलते, किसी में घुसते, निकलते....
जैसे एक ही कक्षा में बार-बार फेल होता
कोई नालायक बच्चा कुछ भी
समझ नहीं पाता है और
जो कुछ भी किया-पाया को ही
अपना प्रारब्ध मानता है।
यों, जल में उठे भवँर से
छूटना और सही दिशा पाना तो
हर कोई चाहता है
मगर यह सौभाग्य असंख्य में से
किसी एक के भाग्य में ही आता है
वरना वक्त की इस वाहक पट्टी (conveyer belt) पर
कितना भी कोई रुकना चाहे मगर
चलता ही चला जाता है....
बहता ही जाता है.....
---------- - सुरेन्द्र भसीन
हजारों-हजार साल से
तुम जन्म लेते ही आ रहे हो
एक अनजानी-अनचाही
कर्मों-दुष्कर्मों की व्यवस्था में बंध-बंधाकर।
तुम्हें नहीं पता
तुम्हारे पिछले दुष्कर्म तुम्हें कहाँ ले जायेंगे या
आज किए पाप और पुण्य भविष्य में
तुम्हारे किस काम आयेंगे ?
फिर भी तरह-तरह की
देह धारण करने को व्यवस्थित हो तुम
किसी एक से निकलते, किसी में घुसते, निकलते....
जैसे एक ही कक्षा में बार-बार फेल होता
कोई नालायक बच्चा कुछ भी
समझ नहीं पाता है और
जो कुछ भी किया-पाया को ही
अपना प्रारब्ध मानता है।
यों, जल में उठे भवँर से
छूटना और सही दिशा पाना तो
हर कोई चाहता है
मगर यह सौभाग्य असंख्य में से
किसी एक के भाग्य में ही आता है
वरना वक्त की इस वाहक पट्टी (conveyer belt) पर
कितना भी कोई रुकना चाहे मगर
चलता ही चला जाता है....
बहता ही जाता है.....
---------- - सुरेन्द्र भसीन
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