Monday, March 6, 2017

सन 1984 की याद

"सन 1984 की याद"

अपने ख्वाबों की सलीब उठाये
तुम कब तक भागोगे ?
और अपने अधूरे अरमानों के पीछे
तुम कब तक जागोगे ?
पुराने जातिगत (नस्ली ) घाव कभी नहीं पूरेंगे... अब कभी
ये रिस्ते नासूर ही  बने रहेंगे ...
आते जीवन की खुशियों को बदरंग करते ही रहेंगे
करते ही रहेंगे जब तक तुम सदमों को सहेजो

अच्छा हो इन सलीबों को,
नस्ली हिंसा के इरादों को
वही दफना दो, जला दो जहां से यह शुरू हुए थे
वरना ये समूची कौम को नरभक्षी की तरह खा जायेंगे
यह किसी काम नहीं आयेंगे
यह तो आग से उपजे शोले हैं
सिर्फ आग, हिंसा प्रतिशोध ही फैलायेंगे  
जलायेंगे और जलायेंगे।
        -----                     -सुरेंद्र भसीन 

No comments:

Post a Comment