बेचारगी,लाचारी या मजबूरी
अपनी बलगम भरी थूक ही होती है
जिससे लिपटा-चिपटा आदमी
छूट नहीं पाता है और
दिनों-दिन घिन से घिनोना होता चला जाता है।
जहाँ एक बच्चा भी
सरलता से सत्य कह जाता है
कि राजा नंगा है
कि कविता अच्छी है और
जहाँ कुत्ते जैसा निकृष्ट प्राणी भी
अपना दुख बता पाता है।
वहीं दिमाग से चिपका,
जबान से बिका आदमी
कितना बेचारा और लाचार नज़र आता है
जो बोलते हुए
अपने हक का कहते हुए घिघियाता है
और भय में इतना है कि
मौत आने से पहले ही
कई-कई बार लाचारगी में
मर जाता है।
-------------- -सुरेन्द्र भसीन
अपनी बलगम भरी थूक ही होती है
जिससे लिपटा-चिपटा आदमी
छूट नहीं पाता है और
दिनों-दिन घिन से घिनोना होता चला जाता है।
जहाँ एक बच्चा भी
सरलता से सत्य कह जाता है
कि राजा नंगा है
कि कविता अच्छी है और
जहाँ कुत्ते जैसा निकृष्ट प्राणी भी
अपना दुख बता पाता है।
वहीं दिमाग से चिपका,
जबान से बिका आदमी
कितना बेचारा और लाचार नज़र आता है
जो बोलते हुए
अपने हक का कहते हुए घिघियाता है
और भय में इतना है कि
मौत आने से पहले ही
कई-कई बार लाचारगी में
मर जाता है।
-------------- -सुरेन्द्र भसीन
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