पहाड़ का दर्द
मैं
हूँ एक पहाड़ी पत्थर
जलधार में तो आ गया हूँ न जाने कैसे ?
मगर मेरे भीतर
पानी नहीं है
नमी भी नहीं है
कठोर कड़ा पत्थर हूँ मैं तो
पहाड़ का एक टुकड़ा ....
जलधार में मैं बह नहीं पाता हूँ
जहाँ गिरा था
तभी से अपने को
वहीं अटका हुआ पाता हूँ ...
चूरा-चूरा हो
घुलने में भी बड़ी देर लगाता हूँ...
जल धार से उलझ-उलझ कर
उसको भी बाधित किए जाता हूँ....
गोल-गोल तो हो जाता हूँ
वहीं पड़ा-पड़ा कसमसाता हूँ
पर अपनों को छोड़ आगे नहीं बढ़ पाता हूँ।
कुछ सीखता नहीं हूँ
समझता नहीं हूँ
बस ! झर-झर के खत्म हुआ जाता हूँ ...
क्योंकि मैं हूँ
एक पहाड़ी पत्थर !
-------- -सुरेन्द्र भसीन
मैं
हूँ एक पहाड़ी पत्थर
जलधार में तो आ गया हूँ न जाने कैसे ?
मगर मेरे भीतर
पानी नहीं है
नमी भी नहीं है
कठोर कड़ा पत्थर हूँ मैं तो
पहाड़ का एक टुकड़ा ....
जलधार में मैं बह नहीं पाता हूँ
जहाँ गिरा था
तभी से अपने को
वहीं अटका हुआ पाता हूँ ...
चूरा-चूरा हो
घुलने में भी बड़ी देर लगाता हूँ...
जल धार से उलझ-उलझ कर
उसको भी बाधित किए जाता हूँ....
गोल-गोल तो हो जाता हूँ
वहीं पड़ा-पड़ा कसमसाता हूँ
पर अपनों को छोड़ आगे नहीं बढ़ पाता हूँ।
कुछ सीखता नहीं हूँ
समझता नहीं हूँ
बस ! झर-झर के खत्म हुआ जाता हूँ ...
क्योंकि मैं हूँ
एक पहाड़ी पत्थर !
-------- -सुरेन्द्र भसीन
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