छूटी बिंदी, छूटे बाल ये मेरे बदन पर छूटी तेरे होठों की निशानियाँ
बयाँ कर रही हैं हमारी बीती रात की कहानियाँ।
यही हमारे सम्बन्धों की लोह कड़ियाँ यही मेरे सेहरे की लड़ियाँ
यह सलज्ज पलकें तुम्हारी बयाँ करती हैं हमारे प्रेम की बद्जुबानियाँ।
खेल में, खिलवाड़ में या जवानी की आड़ में जो न की हमने नादानियाँ
उम्रः के इस पड़ाव में जिस्मों पर लिख दी वो अनमोल कहानियाँ।
दिन के कई पहरों कल्पना में उतारी जो जेहने-जिगर में
चाँद के पहर में करीने से कर दी चाहत की वो शैतानियाँ।
उम्रः के इस पड़ाव में शौक अभी और भी हैं बाकी
छूटे बिंदी, छूटे बाल, छूटे तुम्हारे होठों की निशानियाँ।
-------------- -सुरेन्द्र भसीन
बयाँ कर रही हैं हमारी बीती रात की कहानियाँ।
यही हमारे सम्बन्धों की लोह कड़ियाँ यही मेरे सेहरे की लड़ियाँ
यह सलज्ज पलकें तुम्हारी बयाँ करती हैं हमारे प्रेम की बद्जुबानियाँ।
खेल में, खिलवाड़ में या जवानी की आड़ में जो न की हमने नादानियाँ
उम्रः के इस पड़ाव में जिस्मों पर लिख दी वो अनमोल कहानियाँ।
दिन के कई पहरों कल्पना में उतारी जो जेहने-जिगर में
चाँद के पहर में करीने से कर दी चाहत की वो शैतानियाँ।
उम्रः के इस पड़ाव में शौक अभी और भी हैं बाकी
छूटे बिंदी, छूटे बाल, छूटे तुम्हारे होठों की निशानियाँ।
-------------- -सुरेन्द्र भसीन
No comments:
Post a Comment