तुम्हारी जिद
अपने भीतर छुपने का
तुम्हारा किया गया हर प्रयास
बेकार चला जाता है , जैसे
कोई हाथी झाड़ी के पीछे छुप नहीं पाता है,
न जाने क्यों ?
अपनी असफलता का, गल्ती का
तुम सामना नहीं करते हो
और हर बार तुम उसे किसी और के सिर ही मड़ते हो।
तुम गल्ती करके
अपने तर्कों से उसे सही ठहराते हो , जैसे
अनाड़ी निशानची व्यर्थ गोली दागकर
निशाने के गिर्द घेरे लगा दे याकि
अपने किए गुनाहों को
चतुर-चालाक तर्कों से सही ठहरा दे।
------- सुरेन्द्र भसीन
अपने भीतर छुपने का
तुम्हारा किया गया हर प्रयास
बेकार चला जाता है , जैसे
कोई हाथी झाड़ी के पीछे छुप नहीं पाता है,
न जाने क्यों ?
अपनी असफलता का, गल्ती का
तुम सामना नहीं करते हो
और हर बार तुम उसे किसी और के सिर ही मड़ते हो।
तुम गल्ती करके
अपने तर्कों से उसे सही ठहराते हो , जैसे
अनाड़ी निशानची व्यर्थ गोली दागकर
निशाने के गिर्द घेरे लगा दे याकि
अपने किए गुनाहों को
चतुर-चालाक तर्कों से सही ठहरा दे।
------- सुरेन्द्र भसीन