Thursday, May 31, 2018

वृताकार वक़्त

इस 
वर्त्ताकार वक्त में
कोई आगे, कोई पीछे नहीं होता...
हो चुका भी
होने के पीछे होता है और
होता ही रहता है बस रूप बदल बदल कर..
उम्र का
अमीरी का
अहम का
चक्राकार परिवर्तन निष्चित है
लगातार आदमी को
और और उलझाता
आदमी कोल्हू के बैल की तरह
बस गोल गोल घूमता जीवन बिताता
वर्त्तकार वक्त के चॉक पर चढ़ा
निरन्तर चकराता...।
        ------      सुरेन्द्र भसीन          

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