Wednesday, May 23, 2018

बाजार

अकेले में 
जब जब भी लोग
अपनी गिरेबान में झाँकते हैं
तो थर थर काँपते हैं
कोई भी अपने जमीर से आँखे नहीं मिला पाता
आईने में वह खुद का
अक्स नहीं देखते
आईना ही उन्हें घूरने है लग जाता।
कहां तक?
पाप का काला अंधेरा समेटें
कुछ तो पुण्य किरण हो
तभी तो कुछ अक्स है दिखता 
वरना,आईना काला ब्लैकबोर्ड होकर
हमीं को है मुंह चिढ़ाता।
जमीर तो रहा नहीं अब किसीका
दुनिया के बाजार में
सभी कुछ बेख़ौफ़ बिकता है जाता..
         ------    सुरेन्द्र भसीन

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