धार्मिकता
अपनी
जीवन यात्रा की
अंतिम सीढ़ी पर खड़ा हर इंसान
भीतर ही भीतर बड़ा घबराता है कि
उसका अगला पग, अगला पल
कहाँ पड़ेगा?
उसको समझ नहीं आता है...
मन ही मन
वह तो यही चाहता है कि
वक़्त उसे बिल्ली के बिलोटे की तरह
अडोल कहीं और रख दे...
मगर उसे अहसास है कि
राहत व रहमत का यह पल
जीवन भर उसने नहीं कमाया है
और अपना जीवन
यूँ ही वासनामयी दौड़ में बिताया है।
अब वह बड़ा छटपटाता है
नालायक विद्यार्थी की तरह
अपना कसूर छुपाता है,
अपना भय किसी से कह भी नहीं पाता है।
इसलिए अपने अंतिम क्षणों को
ईश्वर भक्ति में लगाता है।
------ सुरेन्द्र भसीन
जीवन यात्रा की
अंतिम सीढ़ी पर खड़ा हर इंसान
भीतर ही भीतर बड़ा घबराता है कि
उसका अगला पग, अगला पल
कहाँ पड़ेगा?
उसको समझ नहीं आता है...
मन ही मन
वह तो यही चाहता है कि
वक़्त उसे बिल्ली के बिलोटे की तरह
अडोल कहीं और रख दे...
मगर उसे अहसास है कि
राहत व रहमत का यह पल
जीवन भर उसने नहीं कमाया है
और अपना जीवन
यूँ ही वासनामयी दौड़ में बिताया है।
अब वह बड़ा छटपटाता है
नालायक विद्यार्थी की तरह
अपना कसूर छुपाता है,
अपना भय किसी से कह भी नहीं पाता है।
इसलिए अपने अंतिम क्षणों को
ईश्वर भक्ति में लगाता है।
------ सुरेन्द्र भसीन
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