वस्तुएं हों
स्थितियाँ हों याकि सम्बंध
मैं उन्हें बड़ी मजबूती से
पकड़ता हूँ, जकड़ता हूँ
मन से,तन से अपनी आत्मा से
छूट जाने का सदा
बड़ा भय खाता हूँ
इसलिए भीतर ही भीतर
कड़ा हो जाता हूँ तो
सहज व्यवहार नहीं कर पाता हूँ...
दरअसल मैं
जीना सीखा ही नहीं हूँ
मैं अभी
अबोध ही हूँ
अनुभवी होना चाहता हूँ।
------ सुरेन्द भसीन
स्थितियाँ हों याकि सम्बंध
मैं उन्हें बड़ी मजबूती से
पकड़ता हूँ, जकड़ता हूँ
मन से,तन से अपनी आत्मा से
छूट जाने का सदा
बड़ा भय खाता हूँ
इसलिए भीतर ही भीतर
कड़ा हो जाता हूँ तो
सहज व्यवहार नहीं कर पाता हूँ...
दरअसल मैं
जीना सीखा ही नहीं हूँ
मैं अभी
अबोध ही हूँ
अनुभवी होना चाहता हूँ।
------ सुरेन्द भसीन
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