Friday, May 25, 2018

कराहते ठूँठ

कराहते ठूँठ

पेड़ हो
इंसान हो याकि सम्बंध
सूखने मत दो कभी
सूखते ही बेकार हो जाते हैं
काट दिए जाते हैं जीवन जड़ों से
वे खुद भी खिलना खिलखिलाना भूल जाते हैं
आखिर सूखापन किसे भाता है
चाहत के न उनपर फूल आते हैं न पत्ते
कोई पक्षी भी बैठना नहीं चाहता है
ऐसे में वे सिर्फ
जलते हैं और जलाने के काम आते हैं
या फिर बस
कराहते ठूंठ रह जाते हैं...
        ------     सुरेन्द्र भसीन

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