मंदिर-मस्जिद (अधूरी है....
के झगड़े में
नफ़रत के बीज तुमने
इतने बो दिए हैं कि
अपने देवता न जाने तुमने
कहाँ खो दिए हैं.....
आंसू चाहे नहीं निकले
मगर ये दिल कितने रो दिए हैं
अपने देवता तुमने न जाने
कहाँ खो दिए हैं ....
पूजा की पद्धतियों को सही ठहराते-चुनते
कितने रिश्ते तुमने धो दिए हैं कि
अपने देवता तुमने कहाँ खो दिए हैं ......
--------------- - सुरेंद्र भसीन
के झगड़े में
नफ़रत के बीज तुमने
इतने बो दिए हैं कि
अपने देवता न जाने तुमने
कहाँ खो दिए हैं.....
आंसू चाहे नहीं निकले
मगर ये दिल कितने रो दिए हैं
अपने देवता तुमने न जाने
कहाँ खो दिए हैं ....
पूजा की पद्धतियों को सही ठहराते-चुनते
कितने रिश्ते तुमने धो दिए हैं कि
अपने देवता तुमने कहाँ खो दिए हैं ......
--------------- - सुरेंद्र भसीन
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