कुछ लोग कैसा जुगाड़ लगाते हैं
साँप की भी सीढ़ी बनाकर
ऊपर चढ़ जाते हैं।
और कुछ लोग
सीढ़ी को साँप समझकर
छूने से भी घबराते हैं....
कुछ को तरक्की का जनून
यूँ सवार होता है कि
दिन -रात खटते हैं ...
तो कुछ को
काम का फोबिया ऐसा हो जाता है कि
बैठे-बैठे घटते हैं ...
मुश्किल
तो दोनों में ही है
अति सदा गति (तेज या धीमे ) पर भारी है
इसलिए, संतुलित चलने में ही
समझदारी है।
------------ - सुरेन्द भसीन
साँप की भी सीढ़ी बनाकर
ऊपर चढ़ जाते हैं।
और कुछ लोग
सीढ़ी को साँप समझकर
छूने से भी घबराते हैं....
कुछ को तरक्की का जनून
यूँ सवार होता है कि
दिन -रात खटते हैं ...
तो कुछ को
काम का फोबिया ऐसा हो जाता है कि
बैठे-बैठे घटते हैं ...
मुश्किल
तो दोनों में ही है
अति सदा गति (तेज या धीमे ) पर भारी है
इसलिए, संतुलित चलने में ही
समझदारी है।
------------ - सुरेन्द भसीन
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