Monday, April 10, 2017

नया जीवन

कभी-कभी
अपनी पुरानी बनावट में
वह नहीं कर पाता है
जो चकनाचूर होकर
बहते हुए व्यक्ति कर जाता है।
कितनी ग्लानि होती है
पुराना होकर, थका होकर
बेकार एक ही जगह पड़े हुए
और कितनी मौज
संतोष, उल्लास होता है
हवा में, पानी में या समय संग बहते हुए।
नये-नये अनुभवों को सहेजते
बढ़ते हुए, बहते हुए, चलते हुए
जीवंत ही लगता है सब कुछ।
मगर जीवन के शुरू में एक निज का आकार
सभी को भाता है।
फिर चाहे बीतते वक्त के साथ
व्यक्ति उससे उकताता चला जाता है
दूसरी नयी ताजी देह चाहता है
व्यक्ति फिर से
जल्दी से
शुरू करना या
होना चाहता है
चकनाचूर होकर
नया हो जाना चाहता है।
----------- -सुरेन्द्र भसीन

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