मैं
धरती हूँ ?
कि बीज हूँ ?
कि वृक्ष हूँ ?
कि आकाश हूँ ?
कि आकाश कि चाह
और प्यास को
सिर्फ धरती तक पहुँचाता हूँ....
कि धरती के सीने में
उसे जीवन-सा रोपने
प्रकाश बन आता हूँ....
----------- सुरेंद्र
उन्होंने
हमारी अगर हाँ में हाँ कर दी
तो हम खुश,
और न कर दी तो नाराज ...
यही समझ तो हमने मिटानी है और
हाँ या न की समझ
सही और ग़लत की तार्किकता बनानी है
वरना, हाँ और न तो
महज हमें बरगलाने के लिए ही वह करते हैं
वैसे तो हर रोज
वह गिरगिट की तरह रंग बदलते हैँ
----------- सुरेंद्र
इक उम्र के बाद
दिल , दिल नहीं रहता
दिमाग हो जाता है और
ख्वाबों का ताना बाना
जीवन का हिसाब हो जाता है।
इंसान के पर भी
उसका वजन तौलने लगते हैं
और मन के सहारे उड़ने से पहले ही
न बोलने लगते हैं ...
मेघा के घिरते ही
मन मयूर भी पंख फैलाकर नाचता नहीं है
उन्हीं पंखों से पहले अपने गन्दे चरण ढांपता है
और गरीब अपनी झोपड़ी के
टपकने के भय से
थर-थर कांपता है।
---------- सुरेंद्र
मैं
वक्त की इंतजार में था और
इधर वक्त था कि मेरे ही सामने से
होकर गुजरा जा रहा था.....
वो तो
मुझे लगातार देख रहा था
और एक मैं था कि
लाख प्रयत्न करके भी
उसे नहीं देख पा रहा था।
यूँ सब कुछ
घटित हो भी रहा था
मगर मेरे हाथ
कुछ नहीं लग पा रहा था
---------- सुरेंद्र
धरती हूँ ?
कि बीज हूँ ?
कि वृक्ष हूँ ?
कि आकाश हूँ ?
कि आकाश कि चाह
और प्यास को
सिर्फ धरती तक पहुँचाता हूँ....
कि धरती के सीने में
उसे जीवन-सा रोपने
प्रकाश बन आता हूँ....
----------- सुरेंद्र
उन्होंने
हमारी अगर हाँ में हाँ कर दी
तो हम खुश,
और न कर दी तो नाराज ...
यही समझ तो हमने मिटानी है और
हाँ या न की समझ
सही और ग़लत की तार्किकता बनानी है
वरना, हाँ और न तो
महज हमें बरगलाने के लिए ही वह करते हैं
वैसे तो हर रोज
वह गिरगिट की तरह रंग बदलते हैँ
----------- सुरेंद्र
इक उम्र के बाद
दिल , दिल नहीं रहता
दिमाग हो जाता है और
ख्वाबों का ताना बाना
जीवन का हिसाब हो जाता है।
इंसान के पर भी
उसका वजन तौलने लगते हैं
और मन के सहारे उड़ने से पहले ही
न बोलने लगते हैं ...
मेघा के घिरते ही
मन मयूर भी पंख फैलाकर नाचता नहीं है
उन्हीं पंखों से पहले अपने गन्दे चरण ढांपता है
और गरीब अपनी झोपड़ी के
टपकने के भय से
थर-थर कांपता है।
---------- सुरेंद्र
मैं
वक्त की इंतजार में था और
इधर वक्त था कि मेरे ही सामने से
होकर गुजरा जा रहा था.....
वो तो
मुझे लगातार देख रहा था
और एक मैं था कि
लाख प्रयत्न करके भी
उसे नहीं देख पा रहा था।
यूँ सब कुछ
घटित हो भी रहा था
मगर मेरे हाथ
कुछ नहीं लग पा रहा था
---------- सुरेंद्र
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