Thursday, February 16, 2017

टूटे तुम

"टूटे तुम"

कुछ चीजें
तुम्हें खुद महसूस नहीं होतीं
लेकिन तुम्हारे भीतर फँसा दी जाती हैं
विरोध बनाकर
तुम्हारा क्रोध बनाकर।
और एक सुई सी बात से तिलमिलाकर
तुम हवा भरे
फुग्गे-सा फट पड़ते हो
भरी महफ़िल में एक दिन
एक खोखली ऊंची
बड़ाम ... के साथ
अपना कचरा करवाते,
हंसी उड़वाते,
अपनी ही बनावट
नकल के कारण
अपने वजूद से
ख़ारिज होते
अपनी ही नजर में
गिरते जाते....
----------          सुरेंद्र भसीन
   

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