एक था राजा
जैसे तुगलक
रोज जारी करता था
नये-नये फरमान कि -
ऐसे को वैसा कर दो
वैसे को ऐसा कर दो
इस इंसान को भेजो बियाबान
इस शेर को दे दो
शहर में बड़ा सा आलिशान मकान ,
मछली को पेड पर घोंसला बना दो,
चिड़िया को पानी में तैरा दो
यानि, कर रखा था खासो-आम को परेशान।
मगर क्या करें ?
राजा के आगे कोई कुछ नहीं बोलता था,
राजा की ताकत के आगे सब सही,जायज और सब कुछ चलता था...
नस्ल का चाहे हो घोडा उस राज्य में गधे के आगे हाथ मलता था....
जो नहीं हुआ कभी
वह एक दिन हो गया ....
जनता की क्रान्ति के आगे
राजा का सब कुछ स्वाहा हो गया।
घोड़े ने गधे को उसकी औकात बता दी
चिड़िया ने भी मछली को पानी की राह दिखा दी
आदमी का दावा मकान पर हो गया और
शेर भी न जाने जंगल में कहाँ खो गया....
बात सिर्फ इतनी-सी होती तो
यहां क्यों बयां होती
वह तो परंपरा ही बनती जा रही है
राजा कोई भी हो?
राज्य कोई भी हो ?
जनता ही कष्ट पा रही है
उसकी ही दुर्गति हुए जा रही है ....
--------- सुरेन्द्र भसीन
जैसे तुगलक
रोज जारी करता था
नये-नये फरमान कि -
ऐसे को वैसा कर दो
वैसे को ऐसा कर दो
इस इंसान को भेजो बियाबान
इस शेर को दे दो
शहर में बड़ा सा आलिशान मकान ,
मछली को पेड पर घोंसला बना दो,
चिड़िया को पानी में तैरा दो
यानि, कर रखा था खासो-आम को परेशान।
मगर क्या करें ?
राजा के आगे कोई कुछ नहीं बोलता था,
राजा की ताकत के आगे सब सही,जायज और सब कुछ चलता था...
नस्ल का चाहे हो घोडा उस राज्य में गधे के आगे हाथ मलता था....
जो नहीं हुआ कभी
वह एक दिन हो गया ....
जनता की क्रान्ति के आगे
राजा का सब कुछ स्वाहा हो गया।
घोड़े ने गधे को उसकी औकात बता दी
चिड़िया ने भी मछली को पानी की राह दिखा दी
आदमी का दावा मकान पर हो गया और
शेर भी न जाने जंगल में कहाँ खो गया....
बात सिर्फ इतनी-सी होती तो
यहां क्यों बयां होती
वह तो परंपरा ही बनती जा रही है
राजा कोई भी हो?
राज्य कोई भी हो ?
जनता ही कष्ट पा रही है
उसकी ही दुर्गति हुए जा रही है ....
--------- सुरेन्द्र भसीन
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