मानों या
न मानों
इंसान भी ढूंढ़ता है मौका
एक उम्दा - खालिस
जानवर हो जाने का।
समाज की नजर के हटते ही
सदियों से सिखाई शिक्षा व तमीज
भूल जाने का।
अपनी शारीरिक भूख- हवस मिटने के लिए
किसी को खा जाने का,
किसी को चाट जाने का।
शर्म, हया, दया, मोह, माया
और बड़े- बुजुर्गों का मान-सम्मान
सब पानी में घोलकर पी जाने का।
अपनी दैनिक जरूरतों के लिए
सब सीमाएं लांघ जाने का
एक उम्दा,खालिस
जानवर हो जाने का
इंसान भी ढूंढता है मौका.......
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सुरेंद्र
न मानों
इंसान भी ढूंढ़ता है मौका
एक उम्दा - खालिस
जानवर हो जाने का।
समाज की नजर के हटते ही
सदियों से सिखाई शिक्षा व तमीज
भूल जाने का।
अपनी शारीरिक भूख- हवस मिटने के लिए
किसी को खा जाने का,
किसी को चाट जाने का।
शर्म, हया, दया, मोह, माया
और बड़े- बुजुर्गों का मान-सम्मान
सब पानी में घोलकर पी जाने का।
अपनी दैनिक जरूरतों के लिए
सब सीमाएं लांघ जाने का
एक उम्दा,खालिस
जानवर हो जाने का
इंसान भी ढूंढता है मौका.......
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सुरेंद्र
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