चुप भी तुम रह्तीं
तो इसमें भी बड़ा कुछ कहतीं...
इतना बोलकर भी
तुमने क्या पा लिया?
अपनी नियत पर
एक सवालिया निशान लगा लिया।
अब कुछ नहीं हो सकता।
जैसे कमान से छूटा तीर वापिस नहीं आ सकता
तुम्हारा कहा हुआ भी वापिस नहीं जा सकता...
तुम्हारा व्यंग्य
कर चुका घाव जितना गहरा उसने करना था
यानि सालों-साल से बना-बनाया
जो अब तक हमारे बीच था
एक झटके से खत्म हो गया...
किस्सा-कहानी हो गया...
मरघट में कहीँ माटी के नीचे दफन हो गया।
अब सदियों लगेंगी
इसको माटी बनते
फिर तो जाकर कोई नया फूल, नया बीज अंकुरित होगा...
तब तक
सब टूटा-फूटा, क्षत-विक्षत .... क्षत-विक्षत ....
------------------ -सुरेंद्र भसीन
तो इसमें भी बड़ा कुछ कहतीं...
इतना बोलकर भी
तुमने क्या पा लिया?
अपनी नियत पर
एक सवालिया निशान लगा लिया।
अब कुछ नहीं हो सकता।
जैसे कमान से छूटा तीर वापिस नहीं आ सकता
तुम्हारा कहा हुआ भी वापिस नहीं जा सकता...
तुम्हारा व्यंग्य
कर चुका घाव जितना गहरा उसने करना था
यानि सालों-साल से बना-बनाया
जो अब तक हमारे बीच था
एक झटके से खत्म हो गया...
किस्सा-कहानी हो गया...
मरघट में कहीँ माटी के नीचे दफन हो गया।
अब सदियों लगेंगी
इसको माटी बनते
फिर तो जाकर कोई नया फूल, नया बीज अंकुरित होगा...
तब तक
सब टूटा-फूटा, क्षत-विक्षत .... क्षत-विक्षत ....
------------------ -सुरेंद्र भसीन
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