प्रेम कामना
न जाने
यह क्या है?
कि क्यों है?
कि जब भी तुम मुझे डाँटती हो तो
मुझे बड़ा ही अच्छा लगता है।
तब मैं एक बच्चे जैसा बन जाता हूँ और
तुम मेरी माँ या फिर कोई मेरी प्रिय टीचर...
मतलब नहीं कोई होता
मुझे मेरी किसी गलती से
मुझे तो बस तुम्हारा डांटना ही बड़ा भाता है...
सब तरफ मीठा-मीठा-सा हो जाता है...
मैं समझ नहीं पाता हूँ कि मुझे
तुम्हारी डांट खाने में इतना
मजा क्यो आता है?
तुम मेरे कान उमेठो
मुझे चपत लगाओ तो
मन कैसी-कैसी चाहत से भर जाता है
मैं तो चाहता ही यही हूँ कि
मैं गलती न भीे करूँ
तो भी तुम मुझे डांट लगाओ
मुझ पर बेवजह चिल्लाओ
मेरे बाल और गाल खींचो
मुझसे जबरदस्ती गलती मनवाओ
और
यों मुझे
अपनी समीपता का अहसास करवाओ।
------ सुरेन्द्र भसीन
न जाने
यह क्या है?
कि क्यों है?
कि जब भी तुम मुझे डाँटती हो तो
मुझे बड़ा ही अच्छा लगता है।
तब मैं एक बच्चे जैसा बन जाता हूँ और
तुम मेरी माँ या फिर कोई मेरी प्रिय टीचर...
मतलब नहीं कोई होता
मुझे मेरी किसी गलती से
मुझे तो बस तुम्हारा डांटना ही बड़ा भाता है...
सब तरफ मीठा-मीठा-सा हो जाता है...
मैं समझ नहीं पाता हूँ कि मुझे
तुम्हारी डांट खाने में इतना
मजा क्यो आता है?
तुम मेरे कान उमेठो
मुझे चपत लगाओ तो
मन कैसी-कैसी चाहत से भर जाता है
मैं तो चाहता ही यही हूँ कि
मैं गलती न भीे करूँ
तो भी तुम मुझे डांट लगाओ
मुझ पर बेवजह चिल्लाओ
मेरे बाल और गाल खींचो
मुझसे जबरदस्ती गलती मनवाओ
और
यों मुझे
अपनी समीपता का अहसास करवाओ।
------ सुरेन्द्र भसीन
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