Monday, October 29, 2018

झूठ और सच

पहले
झूठ और सच में
अंतर हुआ करता था
कई समुद्रीमील का...
झूठ को सच साबित करने वाला
उसमें डूब ही जाता था हमेशा
और अपने को सही साबित नहीं कर पाता था।
दोनों अपनी चाल-ढाल, रंग-ढंग से
दूर से ही पहचाने जाते थे,
कभी एक-से नजर नहीं आते थे..
मग़र आज तो
झूठ और सच एक ही हो गए हैं
पहचान में ही नहीं आते
दोनों जुड़वाँ भाईयों जैसे
कपड़े बदल-बदल कर आते-जाते बार-बार सामने
सच में,
झूठ और सच में हम अंतर नहीं कर पाते...
सोचो कभी, क्या हो?
कि किसी सदी का
काला और सफ़ेद खो जाए
याकि एक हो जाए-
सारा काला या सारा सफेद?
दिन या रात तो बचे ही न जैसे...
सारे रंग  -  बदरंग
फिर ऋतुएँ भी नहीं बदलेंगी
समय भी कहीं रुक गया हो जैसे ????
झूठ और सच का लंबा अंतर
बना ही रहना चाहिए
वैसे...!
        -------       सुरेन्द्र भसीन

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