Tuesday, October 30, 2018

अनाम योद्धा

मैं
अपने आपको
एक बिन्दू से दूसरे बिन्दू तक
चलता हुआ देख रहा हूँ लगातार...
रोज बदलता हुआ
निरंतर सफ़र करता हुआ।
देह के एक बिन्दू से जीवन के विभिन्न बिंदुओं तक
रोज होती है मेरी यात्रा मग़र
मैं समानुपाती नहीं बढ़ पाता हूँ
 - कहीं थोड़ा तो कहीं ज्यादा,
   कहीं आगे तो कहीं पीछे होता जाता...
फिर-फिर कोशिश करता
अपना आंकलन खुद ही करता
घिसट-घिसट के ही सही
मग़र आगे बढ़ता
अपने से संघर्ष करता।
          -------        सुरेन्द्र भसीन

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