"भेड़िया-धसान" कहानी
वीरेंद्र ?.... यस्सर !
जयवीर?.... यस्सर !
मुलखराज ?.... यस्सर !
मैंने गर्दन उठा कर देखा। सामने दूसरे बैंच पर मुक्खी(मुलखराज) बैठा था। उसे अपने पास बुलाया। उसकी हालत पहले से अधिक खस्ता थी। सूख कर कांटा हो चुकी थी उसकी देह। पूरा चेहरा फुंसियों से भरा था। हाथ, पाँव और गर्दन पर मैल की तहें जमीं थीं। मैली कमीज़ जिसके कालर फट चुके थे। खाकी नेकर के नीचे पतली-काली टांगें। पाँव में रबर के पुराने स्लीपर। बस, देखते ही घृणा हो आती थी।
मैंने सप्ताह भर से स्कूल न आने का कारण पूछा। उसने नजरें झुका लीं। धीरे से बोला - "बुखार था। "
मैंने मुहँ पर निकल आयी फुंसियों के बारे में जानना चाहा।
संक्षिप्त-सा उत्तर - "बुखार के कारण हो गई मास्टरजी !"
"बस्ता उठाओ और घर जाओ। इनका ईलाज कराने के बाद आना। नहीं तो अन्य बच्चों को भी हो जायेंगी। "
उसने सिर तो हिला दिया। मगर अंदर-ही अंदर वह हीन भावना से भर गया। उसका चेहरा थोड़ा और मुरझा गया। लेकिन वह बिना बोले धीरे से पीछे मुड़ा। बस्ता उठाया। क्लास से बाहर निकल गया।
अगला पीरियड खाली था। मैं सोचने लगा। क्या भला मुक्खी का पिता इसका ईलाज करायेगा ? मन क्षुब्ध हो उठा। इस स्कूल में मैं पिछले पाँच वर्षों से पढ़ा रहा हूँ। मुक्खी के पिता को भी अच्छी तरह जानता हूँ। यहीं पटेल नगर के थाने में मामूली सिपाही है। छ: बच्चे हैं छोटे-छोटे। शराब की लत के कारण घर में पैसों के नाम पर तलछट ही पहुंचती है जैसाकि मुक्खी ने भी एक बार बताया था। उनकी माँ किसी तरह माँग-तांग कर गुजारा चलाती है। मैंने अपने आज के निर्णय के बारे में फिर सोचा कि मुक्खी को लौटाकर शायद मैंने ठीक नहीं किया। मगर, इसके बिना कोई चारा भी तो नहीं था, यही सोचकर मैं अपने निर्णय के प्रति थोड़ा आश्वस्त हो गया।
अगले दिन मुक्खी को फिर क्लास में बैठा पाया। मैंने उसे पास बुलाकर डांटते हुए कहा - "तुम्हें कल कहा था कि ईलाज करवाकर आना। फिर बिना ईलाज कराये कैसे आ गया ? बस्ता उठाओ और क्लास से बाहर निकलो। मेरे पास समय नहीं है तुम्हारे साथ मगज मारने के लिए। "
वह पूर्ववत: सिर झुकाए खड़ा रहा।
मैं हैरान था - कहाँ गया उसका क्रोध ! पहले डांटने पर वह अपना क्रोध प्रकट करता था, बहस करता था। लेकिन आज !
वह चुपचाप खड़ा है, बिना क्रोध-विरोध प्रकट किए।
मैंने फिर कहा - "वैसे भी तुम्हें स्कूल छोड़ ही देना चाहिए। दो-तीन वर्षों से इसी क्लास में पड़े-पड़े ऊंट जैसे हो गए हो। पढ़ते भी नहीं, लड़कों से मारपीट अलग। "
वह मौन सब कुछ सुनता रहा।
मगर , मैंने मौन के पीछे छुपे ज्वालामुखी को उसकी आँखों में उमड़ते आँसुओं से भाँप लिया।
मुझे उससे सहानुभूति हो आयी। मैंने रोने का कारण पूछा। तो उसने ज्यादा सिर झुका लिया। उसकी आँखों से गंगा-जमुना बह पड़ी। वह सिसकने लगा। मानों विवशता में भीतर ही भीतर बहुत रो लिया हो।
फिर सिसकियों में बोला - "मास्टरजी ! मैंने पिताजी से ईलाज के लिए कहा था। उन्होंने मुझे डाँटा और मारा भी। बोले मेरे पास पैसे नहीं हैं डाक्टर के पेट में डालने के लिए। और फिर शराब पीने चले गए। "
उसका रोना और तेज हो गया। उसकी इस बात से मेरा हृदय द्रवित हो उठा। मैंने कुछ नरम लहजे में उसे कहा - "देखो ! तुम अभी घर जाओ। कल पिताजी के साथ आना। " उसने बेमन से हामी भर दी और बस्ता लेकर चला गया। मगर उसके बाद वह कभी स्कूल न आया। लड़कों ने बताया वह किसी काम पर लग गया है। मैंने भी आश्वस्त होकर कुछ दिन बाद उसका नाम रजिस्टर से काट दिया।
एक दिन मैं जैसे ही स्कूल पहुँचा तो मुझे पता लगा कि मेरी क्लास का एक लड़का राजेश घर से भाग गया है। साथ में घर के कपड़े-गहने भी ले गया है। इस बात का जिक्र मैंने क्लास में जब किया तो लड़कों ने बताया कि उसकी दोस्ती मुक्खी के साथ थी। मैंने मुक्खी के घर से पता कराना भी उचित समझा। मुक्खी भी घर से लापता था। मुझे विश्वास हो गया कि मुक्खी ही राजेश को लेकर भागा होगा।
दो ही दिनों के बाद दोनों घर लौट आए। राजेश ने अपने घर एक मनगढ़ंत कहानी कह सुनाई। घर वाले भी अपनी इज्जत बचाने के चककर में उसी कहानी को प्रचारित करने लगे कि वह अपनी मौसी के घर गया था। खैर ! बात आई-गई हो गई।
इधर मैं कुछ अधिक व्यस्त रहने लगा। मगर मुक्खी की खबरें मुझे लगातार मिलती रहतीं। कभी वह लोगों को पीट देता, कभी जुआ खेलता पकड़ा जाता, कभी किसी की कार नाली में धकेल देता, कभी अपने घर चोरी करते पिटता। सिगरेट पीना, गाली देना तो बड़ी आम बात थी उसके लिए। अब मोहल्ले में कोई भी घटना घटती लोग उसमें मुक्खी का हाथ ढूंढ ही लेते। आजकल सभी की चर्चा का विषय मुक्खी का कोई कारनामा ही होता। मैं देख रहा था कि उसमें अपराध वृति घर कर चुकी थी। और धीरे-धीरे मुक्खी मुहल्ले के अपराध का मुखिया बनता जा रहा था।
..... और आज जब मैं छत पर बैठा सर्दियों की धूप सेंक रहा हूँ। मकान मालिक के लड़के ने आकर बताया - "सर ! पुलिस मुक्खी को पकड़ कर ला रही है। लड़के कहते हैं उसने कई चोरियाँ की हैं। पुलिस उसे उन-उन घरों में लेकर जायेगी जहाँ-जहाँ उसने चोरी की होगी। "
पिछले महीने हमारे स्कूल से टी. वी. चोरी चला गया था। पुलिस में रिपोर्ट की गई। लाख ढूंढ़ने पर भी चोर का पता न लग सका।
अगले दिन स्कूल लगने के बाद बाहर शोर सुनकर मैं क्लास से पढ़ाना छोड़कर बाहर आ गया।
देखा स्कूल के मुख्यद्वार पर पुलिस मुक्खी को लेकर खड़ी है।
------------------------- -सुरेन्द्र भसीन
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