Wednesday, July 12, 2017

जीवन यात्रा

जीवन  में 
कई बार 
छिटक कर हम कहीं 
एक-दूसरे से दूर चले जाते हैं....
न  चाहते हुए भी 
बातों ही बातों में 
आपस में यूहीं टकरा जाते हैं..... 
जैसेकि पुरानी पड़ती गरारी के दांते घिस जाते हैं 
अटक नहीं पाते 
बिना वजह हम भी छिटक-छिटक जाते हैं.... 
तो पास रहते-रहते हुए भी 
कहीं भीतर से परे-परे हो जाते हैं.... 
नाक आड़े न भी आए तो 
बातों के किनारे ही जुड़ नहीं पाते हैं.... 
समझते हैं तो मान नहीं पाते 
मानते हैं तो 
न समझ बनकर ही अनदेखा करते जाते हैं...
अपनी जरूरतों की वजह से 
ज्यादा विलग भी नहीं रह पाते 
क्योंकि ग्यारह से घटकर एक जो हो जाते हैं 
इसलिए बार-बार लड़खड़ाते हैं ... 
फिर भी 
होता है कई बार कि हम 
 न चाहते हुए भी 
छिटक कर एक-दूसरे से 
दूर चले जाते हैं.... 
         -----------        - सुरेन्द्र भसीन 

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