Monday, August 19, 2019

हमारे बुजुर्ग

हमारे बुजुर्ग

चलती नहीं है
अब उनकी
मग़र वे अब भी
चलाना चाहते हैं
न चलने पर बड़ा छटपटाते हैं
इसलिए चलती गाड़ी में फच्चर(अड़ंगे) अड़ाते हैं।
मरने तक
हितों से/कुर्सी से
चिपके रहना चाहते हैं
वक़्त रहते अपने को
नए हालातों के लिए तैयार नहीं किया
इसलिए अब बदलना नहीं चाहते।
बूढ़े हो चुके हैं मग़र
कहलाना नहीं चाहते
नवपीढी पर अविश्वास/असुरक्षा के कारण
कुछ छोड़ना/देना नहीं चाहते
गुलामी लगता है उन्हें
अपनी संतान का कहा मानना इसलिए
अपने में सिकुड़-सिकुड़ जाते हैं मगर
अपनों से तालमेल नहीं बैठा पाते...
सच है
वक्त तो गुजर ही रहा है/रहता है
सदा पुराना जाता है
तभी तो नया आता है
कोई चाहे या न चाहे...
समझे या न समझे...
       -------     सुरेन्द्र भसीन






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