मिल जाते हैं
जीवन के रास्ते में मील के पत्थर
जो बताते हैं कि
रास्ता कितना तय हो गया कि
कितना बाकी रह गया...
आदमी कितना खर्च हुआ और
कितना बचा रह गया या
आदमी कितना सह गया
और कितना उसको झेलना रह गया।
जन्मदिन भी कुछ इसीलिए/ इसी कदर आते हैं
जब आईने में अपने सफेद हुए बाल देखे जाते हैं
तब हमारे ही बच्चे हमें अकेला छोड़
हमसे दूर विदेशों में बस जाते हैं
हम अपने किए पर चाहे पछताते हैं
तब हमारे ही बाल
हमारे नोचने के काम भी नहीं आते हैं।
------- सुरेन्द्र भसीन
जीवन के रास्ते में मील के पत्थर
जो बताते हैं कि
रास्ता कितना तय हो गया कि
कितना बाकी रह गया...
आदमी कितना खर्च हुआ और
कितना बचा रह गया या
आदमी कितना सह गया
और कितना उसको झेलना रह गया।
जन्मदिन भी कुछ इसीलिए/ इसी कदर आते हैं
जब आईने में अपने सफेद हुए बाल देखे जाते हैं
तब हमारे ही बच्चे हमें अकेला छोड़
हमसे दूर विदेशों में बस जाते हैं
हम अपने किए पर चाहे पछताते हैं
तब हमारे ही बाल
हमारे नोचने के काम भी नहीं आते हैं।
------- सुरेन्द्र भसीन
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