Friday, June 9, 2017

हम पत्थर

चुपके से
चिपक कर पहाड़
सटे रहते हैं
एक दूसरे से अपनत्व में।
और इंसान कहलाते हम
जब मर्जी पहुंच जाते हैं,
अपनी जरुरतों के मारे
उन्हें सताने को
काट खाने को
अपनी सँस्कृति, अपनी सभ्यता बढ़ाने को।
क्या कभी
पहाड़ भी आए हैं
हमें सताने को ?
–---------------        सुरेन्द्र भसीन


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