भविष्य
भविष्य
जो अनिश्चित है के बारे में
सोच-सोच कर घबराता हूँ
और जैसे भी, कैसे भी
उसे निश्चित कर
अपने काबू में कर लेना चाहता हूँ।
भला
जो अभी हुआ ही नहीं
उसे कैसे बाँध सकता है कोई
तय करके अपनी गिरह में ?
कितनी और कैसी भी
प्रार्थनाएँ... या... मंत्र
मैं क्यों न रचूँ..... जपूँ ?
भविष्य तो
बेकाबू ही रहेगा....
क्योंकि,
जो कुछ हुआ ही नहीं
गिरह कैसे बाँध सकता है कोई ?
--------------- सुरेन्द्र भसीन
भविष्य
जो अनिश्चित है के बारे में
सोच-सोच कर घबराता हूँ
और जैसे भी, कैसे भी
उसे निश्चित कर
अपने काबू में कर लेना चाहता हूँ।
भला
जो अभी हुआ ही नहीं
उसे कैसे बाँध सकता है कोई
तय करके अपनी गिरह में ?
कितनी और कैसी भी
प्रार्थनाएँ... या... मंत्र
मैं क्यों न रचूँ..... जपूँ ?
भविष्य तो
बेकाबू ही रहेगा....
क्योंकि,
जो कुछ हुआ ही नहीं
गिरह कैसे बाँध सकता है कोई ?
--------------- सुरेन्द्र भसीन
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