Monday, June 19, 2017

मेरी बेटी /सबकी बेटी

"मेरी बेटी /सबकी बेटी"

मैं 
जब भी 
अपनी बीवी की आँखों में देखता हूँ 
उसमें मेरी बेटी का चेहरा नजर आता है। 
जो बड़ी होकर 
अपने पति को 
जैसे बड़ी उम्मीद से याचक होकर निहार रही है 
तो मैं बिगड़ नहीं पाता हूँ 
वहीं ढीला पड़ जाता हूँ। 
क्रोध नहीं कर पाता 
उबलता दूध जैसे छाछ हो जाता है.
हाथ-पांव शरीर और दिल 
अवश होकर जकड़ में आ जाता है 
और आये दिन अख़बारों में पढ़े 
अच्छे-बुरे समाचारों की सुर्खियाँ 
याद आ-आकर मुझे दहलाने लगती हैँ। 
 और मेरी पाशविक जिदें, नीच चाहतें 
बहुत घिनौनी और बौनी होकर 
मेरा मुँह  चिढ़ाने लगती है। 
कोई भला ऐसे में कैसे 
अपने परिवार को भूल
अपनी बेटी के भावी सुखों को नजरअंदाज कर 
अपना सुख चाहता है ?
वह ऐसा बबूल कैसे बौ  सकता है 
जिसे काटने की सोचते ही 
उसका आज कलेजा मुँह  को आता है?

तभी जब मैं 
कुछ कहने को होता हूँ 
तो मेरी बीवी की आँखों में 
मुझे हरेक की 
बेटी का चेहरा नजर आता है। 
  ----------                  सुरेन्द्र भसीन 












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