Thursday, June 22, 2017

गज़ल

"गज़ल "

दिल   की   दूरी   यूँ   मिटायी  जाती  है 
तेजाब डालकर कालिख छुड़ायी जाती है
क्या गोले चलाकर यारी निभायी जाती है 
पत्थरबाजों की पलटन बनायी जाती है  
घूरते   हैं  सदा   तीखे  तेवरों  से   हमें 
क्या   ऐसे   नजरें  मिलायी  जाती  हैं 
यूँ  कारगिल और संसद पर हमला करके 
फिर  अमन  की   बसें चलायी जाती हैं 
कश्मीर में छदम युद्ध की आड़ लेकर 
नौजवानों की नस्ल भड़कायी जाती है 
कहते हैं मैच खेलो, संबंध बनाओ हमसे 
मगर खेल के बहाने नफरत फैलायी जाती है 
यूँ न सुधरेंगी ओछी हरकतें पड़ोसियों की 
जब तक मार नहीं लगायी जाती है। 
            -----------           सुरेन्द्र भसीन 

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