Wednesday, May 31, 2017

अपने में

कभी-कभी
अकेले में,
अपने में उतर जाना भी अच्छा होता है।
चुप छूट जाना भी अच्छा होता है।
अपने में उतरते हुए जानना
कि आदमी अब तक कितना टूटा है।
कि कितना मवाद पडा है
कि कौन फफोला पका है
कि कौन-सा दर्द
नासूर बनने से छूटा है।
और न चाहते भी रोना कहाँ- कहाँ छूटा है।
हमारी हंसी कहाँ गिरी
सपना हमारा कहाँ टूटा है।
कितनी खुशियां हमने समेटी और
कहाँ-कहाँ बोर्राये हम
हमने सम्बंधों में क्या-क्या गवाया और
सजदे में कहां सिर नहीँ झुकाया
यहां तक पहुंचने में
मजबूरियाँ रही मेरी
कभी अकेले बैठ
जानना ही अच्छा होता है
तभी तो
अकेले
अपने में चुप छूट जाना
भी अच्छा होता है।
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सुरेन्द्र भसीन

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