Monday, May 8, 2017

बेकार एक दियासलाई !

तुमने !
अपनी आस,
अपनी जीवन के प्रकाश को
रोशनी को कहीं खो दिया है।
माना कि
जीवन के उजालों में/मौज मस्ती में
वह  तुम्हारे किसी काम नहीं आती थी
सिर्फ तुम्हारे जेब/दिल में बेकार पड़ी रहती थी
 एक दियासलाई
या बीबी की तरह।
मगर, जीवन में अँधेरे होते ही
तुम्हारे लिए वह अपने आप को जलाकर भी
तुम्हारा पथ  तो  जगमगाती थी,
अँधेरे में तुम्हारे लिए
उजाले उगाती थी।
अहीशुं! फिर  भी तुम्हें वह बेकार लगी
और तुमने उसे अपने जीवन से हटा दिया.....
तुमने अँधेरे वक्त  में
उजाले खोदने का एक औजार,एक विचार
एक झटके में ही गंवा दिया .....

तुम समझो दियासलाई या बीबी
न  होने का अहसास
उसके न होने पर ही होता है-
जब  इंसान उजाले  को
उसके विदा हो जाने पर
अकेले अँधेरे कमरे में बैठकर
बुढ़ापे में  रोता है -
मगर, तब बीबी जैसा
उसके जीवन में
दियासलाई -सा
कुछ नहीं होता है।
             ------------            सुरेन्द्र भसीन

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