Monday, May 8, 2017

जो

जो
अपनी नालायकियत
किस्मत या किसी शारीरिक कमजोरी से
कमजोर पड़ जाता है
संघर्ष नहीं कर पाता है
अपनों में पीछे रह जाता है,
दौड़ में नीचे रह जाता है
अपनी सच्चाई या  सादगी की सजा पाता है,
संतोष नहीं कर पाता है
वही लड़ता है सदा....
अपनी खीझ उतारता
बेवजह बहस करता
तोड़ता है
टूटता ही जाता है  सदा ....
गालियाँ देता -खाता
कहना न मानता
चिल्लाता-शोर मचाता
नाराज भी रहता है सदा....
वो,  तुम भी हो
हो सकते हो बड़े,
छोटे बच्चे भी।

उसे सताओ मत,
उससे संवाद बैठाओ !
बच्चे /बड़े को
बचाओ !
                   --------------------           सुरेन्द्र भसीन


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