Friday, May 26, 2017

raja ya purja

राजा !
कैसा राजा ?
वह  तो
सामान्यजन से भी अधिक
लाचार, पीड़ित, नियंत्रित व निर्देशित
अपनी निजता गवां चुका (बेच चुका )
व्यवस्था का एक निरीह पुर्जा है...

एक कृपण, चरित्रविहीन
चेहरा-मोहरा मात्र
जो धड़कता, दहकता अनुदेशों पर...

व्यवस्था का एक
आदर्श, अनुकरणीय विचरता
मांसपिंड मात्र,
महज  गतिकरता...

एक डुगडुगी (कठपुतली)
कहलाने को राजा !
 -------------                 सुरेन्द्र भसीन


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