राजा !
कैसा राजा ?
वह तो
सामान्यजन से भी अधिक
लाचार, पीड़ित, नियंत्रित व निर्देशित
अपनी निजता गवां चुका (बेच चुका )
व्यवस्था का एक निरीह पुर्जा है...
एक कृपण, चरित्रविहीन
चेहरा-मोहरा मात्र
जो धड़कता, दहकता अनुदेशों पर...
व्यवस्था का एक
आदर्श, अनुकरणीय विचरता
मांसपिंड मात्र,
महज गतिकरता...
एक डुगडुगी (कठपुतली)
कहलाने को राजा !
------------- सुरेन्द्र भसीन
कैसा राजा ?
वह तो
सामान्यजन से भी अधिक
लाचार, पीड़ित, नियंत्रित व निर्देशित
अपनी निजता गवां चुका (बेच चुका )
व्यवस्था का एक निरीह पुर्जा है...
एक कृपण, चरित्रविहीन
चेहरा-मोहरा मात्र
जो धड़कता, दहकता अनुदेशों पर...
व्यवस्था का एक
आदर्श, अनुकरणीय विचरता
मांसपिंड मात्र,
महज गतिकरता...
एक डुगडुगी (कठपुतली)
कहलाने को राजा !
------------- सुरेन्द्र भसीन
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