Friday, October 9, 2015

रंग-बिरंगे पक्षी


जैसे 
रंग-बिरंगे पक्षी 
न जाने कहाँ-कहाँ से 
आ बैठते हैं घर की, छतों की मुंडेरों पर 
ख्याल और सपने भी 
अपने आप ही उतर जाते हैं हममें 
जीवन का हिस्सा बन जाने को। 
और मंत्रमुग्ध-सा उसके पीछे हो लेता है 
जीवन स्वर्णमृग पाने को।  
नई लिप्सा में लिपटा-चिपटा 
आत्मा को भटकाने को 
जिज्ञासा का मूल्य 
जीवन से चुकाने को। 

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