जैसे
रंग-बिरंगे पक्षी
न जाने कहाँ-कहाँ से
आ बैठते हैं घर की, छतों की मुंडेरों पर
ख्याल और सपने भी
अपने आप ही उतर जाते हैं हममें
जीवन का हिस्सा बन जाने को।
और मंत्रमुग्ध-सा उसके पीछे हो लेता है
जीवन स्वर्णमृग पाने को।
नई लिप्सा में लिपटा-चिपटा
आत्मा को भटकाने को
जिज्ञासा का मूल्य
जीवन से चुकाने को।
नई लिप्सा में लिपटा-चिपटा
आत्मा को भटकाने को
जिज्ञासा का मूल्य
जीवन से चुकाने को।
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