आदमी अपनी मर्जी से
कुछ भी करे, कहीं भी रहे
बड़ा सुख-संतुष्टी पाता है।
और वहीं उसे किसी मजबूरी में, जिम्मेवारी में,
किसी बंदिश में, आदेशों के तहत कुछ करना पड़े, कहीं रूकना पड़े
तो बड़ा असहज महसूस करता है ,छटपटाता है, पीड़ा पाता है।
कुछ भी करे, कहीं भी रहे
बड़ा सुख-संतुष्टी पाता है।
और वहीं उसे किसी मजबूरी में, जिम्मेवारी में,
किसी बंदिश में, आदेशों के तहत कुछ करना पड़े, कहीं रूकना पड़े
तो बड़ा असहज महसूस करता है ,छटपटाता है, पीड़ा पाता है।
No comments:
Post a Comment